भोपाल – यह कैसा निमंत्रण हैं जिसमें अपने घर पर रहने को कहां जा रहा हैं, लोगों को बुलाकर एकत्रित करके खुद ही पूजा पाठ करवा के अपनी तरफ से प्रसाद बांटने व दान दक्षिणा देने का बोला गया हैं।
…. यह निमंत्रण नहीं राजनैतिक रूप से तीरस्कार, अपमान व अछूत बताकर दूर रहने और अपने-अपने भगवान राम को अपने हिसाब से बनाकर, बैठाकर जो परम्परा सदियों से “रामनवमीं” के दिन चली आ रही हैं उसे खत्म करने की साजिश लगती हैं। देश में कई राम मन्दिर हैं जहां मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करी गई हैं | हिन्दू रिवाज और अब न्यायपालिका द्वारा संविधान की व्याख्या कर लिये गये फैसले के अनुसार हर मूर्त प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जीवित या जिंदा हैं |
भगवान राम के जन्म या भगवान विष्णु के अवतार के अवतरण के असली मुहर्त जो ग्रह-नक्षत्रों के हिसाब से अति विशिष्ट था उसे परिवर्तित करके समय या काल को चुनौती देकर उससे लड़ने के लिए धकेला जा रहा हैं |
यह विधि का विधान हैं समय से आज तक कोई नहीं जीत पाया | भगवान राम को भी समय आने पर उसकी मर्यादा रखते हुए मानव जीवन को छोड़ जल मार्ग से बैकुंठ धाम जाना पड़ा |
रामलला की नई मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा का समय रामनवमी के दिन वो ही समय रखा जाता तो सैकड़ों वर्षों से करोडों साधु-संतों, श्रृद्धालुओं का अयोध्या को लेकर जो आस्था, निष्ठा व समर्पण था उस रामभक्ति को भी आदर व सम्मान मिलता | अभी मन्दिर पुरी तरह बनकर तैयार नहीं हुआ हैं और वेदों एवं शास्त्रों के अनुसार ऐसे मन्दिर में प्राण-प्रतिष्ठा करना अधर्म हैं। यह बात हर रोज कोई न कोई संत सामने आकर कह रहे हैं।
इसे सामान्य भाषा में समझे यदि प्राण-प्रतिष्ठा के दिन मन्दिर के निर्माणाधीन का कोई एक ईंट जितना हिस्सा भी अपरिपक्वता के कारण गिर गया या देश के किसी हिस्सें में कोई प्राकृतिक, ईंसानी भूल व मशीनी फेलियर से दुर्घटना घटित हो गई और गलती से किसी के मुंह से अपशगुन या आज की भाषा में पनौती निकल गया तो समय अधर्म के मार्ग पर चलने की सजा देता नजर आयेगा व राजनैतिक धरातल पर धर्म-अधर्म का संग्राम छिड जायेगा |