भोपाल – दुनिया के सबसे बडे़ भारतीय लोकतंत्र में दुनिया की सबसे बडी राजनैतिक पार्टी के अतिरिक्त सैकडों पार्टीयां और हैं | इन पार्टियों के माध्यम से लोगों को जनता की सरकार चलाने के लिए शिक्षा, आचरण व व्यवस्था के तरिके सिखाये जाते हैं जो विचारधारा के नाम पर अपने को दुसरी पार्टीयों से अलग बनाते हैं | ये ही अपने-अपने दक्ष करे गये कार्यकर्ताओं में से सर्वश्रेष्ठ का चयन कर जनता के मध्य भेजती हैं ताकि उनमे से किसी एक को संविधान के अनुसार देश की मालिक अपना जनप्रतिनिधि चुन अपनी सरकार का गठन कर सके |
वर्तमान में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुये | इसमें जीत के बाद दो केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद सिंह पटेल ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और प्रधानमंत्री को मंत्रीपद का इस्तीफा दे दिया व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह भी इसी पार्टी लाइन पर इस्तीफा दे देगी | इनके अलावा जबलपुर के सांसद राकेश सिंह, सीधी की सांसद रीती पाठक, होशंगाबाद के सांसद उदय प्रताप सिंह, राजस्थान के राजसमंद की सांसद दीया कुमारी, जयपुर के सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, राज्य सभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा, छतीसगढ़ के अरूण साव और गोमती साय इस्तीफा देने में शामिल हैं व अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ भी कतार में हैं |
इन सभी ने बड़े जन-समूह व क्षेत्र-विशेष द्वारा जताये पांच वर्षों के जनप्रतिनिधि के लोकतांत्रिक दायित्व और विश्वास को ठोकर मारकर अल्प जनसमूह व श्रेत्र-विशेष को अपने बड़े दायित्व व कर्तव्य को निभाने में अयोग्य होने का आत्मविश्वास जताते हुए स्वीकार कर लिया | यदि यह सभी अब नये विधायक वाले संवैधानिक पदों को ग्रहण करे तब इनका भी चरित्र प्रमाण-पत्र चेक करा जायेगा तो कानूनन यही निकलेगा की यह उसके लिए योग्य नहीं हैं क्योंकि यह समय से पहले अपने दायित्व, कर्तव्यों, संविधान व धर्म ग्रन्थों की शपथों को भी लात मारकर चल देते हैं | यह तो अब शपथ दिलाने वाले माननीयों पर निर्भर करता हैं कि वो चुनाव आयुक्त के जीत सर्टिफिकेट के साथ पुरानी कार्य वाली संस्था लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाली संसद का कितना आदर करते हैं और उनके जारी चरित्र प्रमाण-पत्र को भी तवज्जों देते हैं या कचरापेटी में डाल देते हैं |
इन सासदों को चुनाव के समय सरकार की तरफ से जनता के निवाले व खून-पसीने की हाडतोड मेहनत से वसूले गये टैक्स के पैंसों से चुनाव खर्च का पैसा दिया गया | इसके अतिरिक्त अन्य सभी हारे चुनाव के उम्मीदवारों को भी पैसा दिया गया और सरकारी तन्त्र पर पैसा पानी की तरह बहाकर चुनाव सम्पन्न कराये गये थे | अब इन सभी जिम्मेदारी से मुंह मरोडने वालों से देश की मालिक जनता को समय पूर्व वापस अपना कामधंधा व जिम्मेदारीयों को पीछे रख नये जनप्रतिनिधी चुनने हेतु चुनाव में धकेलने के अपराध के लिए कोई तो सजा का प्रावधान होगा ताकि लोकतंत्र, संविधान, संसद, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पदों की मर्यादा बची रह सके | धर्म, आस्था, रिति-रिवाज व भगवान राम के आदर्श व बताये मार्ग को देखा जाये तो यही सच हैं रघुकुल रीत (उस समय शासन का नेतृत्व करने वाले भी) सदा चली आई प्राण जाये पर वचन न जाये |
विज्ञान के तर्क व कानूनी आधार से देखा जाये तो इन सभी दायित्व से मुंह मोड़ लेने वालो से पूरे चुनाव खर्च का पैसा व कार्यकाल की बची समयावधि के अनुरूप अलग से आर्थिक दण्ड लगाकर वसूलना चाहिए | इनको पांच वर्षों के पुरे कार्यकाल पर पेंशन में प्रतिमाह देश के खजाने से लाखों रूपये देने का प्रावधान हैं परन्तु आजतक किसी भी मीडिया के माध्यम व लोकसभा और राज्यसभा के सचिवों का आदेश सुनने को नहीं मिला की अब पेंशन बनेगी या नहीं और कटौती होगी तो कितनी होगी | यह दोनों सचिवालय सांसदो के लिए आचरण व न बोलने के शब्दों पर दिशा-निर्देश तुरन्त जारी कर समय व संविधान की मर्यादा पर तनिक भी आंच नहीं आने देते | यदि यह काम राजनैतिक दल ने करवाया हैं त़ो चुनाव खर्च का पैसा इनसे वसूलना चाहिए व दुबारा ऐसा न करने का एफीडेविट लेना चाहिए | यह राजनैतिक दल वैसे भी अपने कुनबे को बढाने के स्वार्थ में मुफ्त बांटने का प्रभोलन देकर देश के खजाने व अर्थतन्त्र पर हमला करके आर्थिक-आतंकवाद को जन्म दे रहे हैं |
इन सभी सांसदों के बिना किसी जानलेवा बिमारी, पारिवारिक मजबूरी, शारीरिक अक्षमता के दायित्व से भागने व बडी पोस्ट से छोटी पोस्ट के पदोअवन्नती या डिमोट पर उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री खुशी से मीलकर बधाई देते हुए अपना सीना छप्पन इंच का फुला कर क्यों गौरवान्वित हुये यह संविधान का नियम तो हमे भी नहीं पता | इस तरह जनता की छाती पर मूंग दलने का काम हर राजनैतिक दल एक व्यक्ति को एक से अधिक जगह पर चुनाव लडने का टिकिट देकर करती हैं | चुनाव-आयोग तो उसे ही कानूनी रूप से सही मानेगी जब एक व्यक्ति सभी सीटों पर चुनाव लडकर जीत जाये व शपथ लेकर छ महीने तक इस्तीफा न देकर तानाशाही जैसे राज करे |
सुप्रीम कोर्ट व भारत के मुख्य न्यायाधीश की माने तो क्षेत्र-विशेष की जनता के प्रतिनिधित्व को संसद से विलोप करना प्राकृतिक न्याय व लोकतंत्र और उसके संविधान के खिलाफ हैं | इसी का प्रतिफल यह निकलता हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन जैसी सरकारी योजना को बीड़ी-सिगरेट के धुंए में उड़ाकर सरकारी आदेश से जनता को चेतावनी दे दी जाये की धुम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है | भूतपूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व में वन नेशन वन इलेक्शन पर बनी कमेटी द्वारा सांसदों द्वारा समय पूर्व चुनाव कराने के इस अमर्यादित कदम पर हमारे ध्यान में कोई प्रतिक्रिया न आई और न आने की सम्भावना दिख रही हैं क्योंकि भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वयं कार्यपालिका के अधीन बनाई कमेटी के लिए न की राष्ट्रपति के अन्तर्गत अपने संवैधानिक पद की पदोंअवनति या डिमोट कराके काम कर रहे हैं | इस कारण बडे़ जनसमूह व क्षेत्र-विशेष के दायित्व को ठोकर मारकर अल्प जनसमूह व क्षेत्र-विशेष का दायित्व लेने का अर्थ उनके समझ से परे हैं |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक