भोपाल – “दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश व अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले इंडिया में वहां के संविधान की व्याख्या करके न्याय करने वाली सबसे बड़ी संस्था भारतीय उच्चतम न्यायालय के तत्वाधान में सार्वजनिक रूप से 22 जनवरी, 2024 को हत्या करी जायेगी । यदि सनातन व हिंदू धर्म और संस्कृति के अनुसार यदि मंत्रों ने काम करा तो एक पत्थर की मूर्ति में प्राणों की प्रतिष्ठा हो जायेगी और वह मीडिया के लाईव टेलिकास्ट में सबके सामने बोलकर, हंसकर व चलकर दिखायेगी | इससे इंडियन कानून व्यवस्था व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायिक प्रक्रिया के तहत प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले व उपस्थिति सभी सहायकों को एक सफल चिकित्सा परीक्षण करने के लिए सबसे जघन्य हत्या के अपराधों की सजा से मुक्त कर अवार्ड के रूप में सम्मानित किया जा सके |
09 नवम्बर, 2019 को भारतीय उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अयोध्या में राम मन्दिर व बाबरी मस्जिद विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था | भारतीय संविधान को मूल आधार बनाकर व उसकी विवेचना करते हुए एक पत्थर की मूर्ति को जीवित इंसान मानते हुए उसे मन्दिर की जमीन का मालिकाना अधिकार दिया था | इसके साथ वहां पर मन्दिर बनाने की अनुमति दे दी | अदालत की वर्षों तक चली सुनवाई में उस पत्थर को एक कम उम्र का बालक मानते हुए अदालत की प्रक्रिया में उपस्थित होंने की छूट दे रखी थी और उसके सहायकों ने सारी कानूनी प्रक्रियाओं को पुरा करा था |
अब अदालत के ऐतिहासिक फैसले के करीबन पांच वर्षों के बाद प्रौढ हो चुके उस जीवित बालक का मन्दिर आधे से ज्यादा पुरा बन चुका हैं | इस जीवित बालक रामलला ने आजतक एक भी बार अन्य जिंदा इंसानों की तरह सामने आकर सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दिया | मन्दिर के अधूरे निर्माण में ही 22 जनवरी, 2024 को प्राण-प्रतिष्ठा की घोषणा उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रमाणित जीवित रामलला के सहायकों ने अपनी तरफ से कर दी |
इस प्राण-प्रतिष्ठा के अन्तर्गत हिन्दू धर्म के रिति-रिवाजों के अनुसार मंत्रों के माध्यम से पत्थर की मूर्त में प्राण डाले जाते हैं | दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश की अदालत में इसे जादू-टोना, अंधविश्वास, तंत्र-मंतर माना जाता हों परन्तु भारतीय उच्चतम न्यायालय इसे संविधान के अनुसार सच मानकर प्रमाणित भी करती हैं |
इस प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में एक प्रौढ बालक की मूर्ति में प्राण डाले जायेंगे | इसके लिए सर्वप्रथम भारत के उच्चतम न्यायालय ने जिस मूर्ति रामलला को जीवित होने की प्रमाणिकता विधि द्वारा स्थापित विधान की शपथ अनुसार संवैधानिक रूप से दी उसके प्राण बाहर निकाले जायेंगे अर्थात कानून की भाषा में हत्या करी जायेगी | इसके लिए जीवित रामलला का कोई बयान व लिखित सहमति का शपथ पत्र सामने नहीं आया और न ही सर्वोच्च अदालत से ऐसी अनुमति मांगी या उसने दी हैं । इस कारण यह सार्वजनिक रूप से किसी की हत्या करने के जघन्य अपराध के दायरे में आता हैं | यदि यह काम भारत के राष्ट्रपति के द्वारा होता तो कानूनी रूप से कुछ नहीं होता क्योंकि संविधान उन्हें किसी भी अपराध व प्रक्रिया में सुनवाई व सजा देने की छूट देता हैं ।
इसके आगे का मामला हैं किसी पत्थर की मूर्ति में प्राण डालकर उसे जिन्दा करने का | यह अपने आप में इंसानी सभ्यता की सबसे बड़ी खोज या अविष्कार होगा | यदि वर्तमान में हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्यों की मंत्रों के इस्तेमाल हेतु तय समय व गलत परिस्थितियों वाली बात सच साबित हुई तो नई प्रौढ रामलला की मूर्ति में प्राण स्थापित नहीं होंगे व अन्य जीवित लोगों की तरह व न बोलकर, चलकर व ईशारे करके बतायेगी | इसके बाद हालात और ज्यादा विकट हो जायेंगे क्योंकि पुरानी रामलला की मूर्ति मे भी वापस प्राण नहीं डाल पायेंगे |
इस पर भारतीय उच्चतम न्यायालय को तुरन्त दोषियों को हत्या की सजा सुनाकर न्याय करना पडेगा अन्यथा ढोगी, पाखन्डी बाबाओं द्वारा आम लोगों को भ्रमित कर प्राणों को ट्रांसफर करने के नाम पर हत्या करने का लाईसेंस मील जायेगा | इसके साथ धूर्त, मक्कार, लालची सलाहकारों को रामलला का बडा हो जाने का बोलकर चुनाव में खड़ा करके संवैधानिक तरीके से लोकतंत्र पर भगवान रामलला का मुखौटा लगाकर स्वयं शासक के रूप पर सत्ता चलाने व सभी सुविधाओं को भोगने का मार्ग मील जायेगा | इसके साथ बडे़ जीवित भगवान को लडकी दिखाने के नाम पर देवदासी जैसी कुप्रथाओं के वापस आने के डर से भारतीय समाज सहम जायेगा |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक