भोपाल – भारत यानि इंडिया, इंडिया यानि भारत में लोकतंत्र एक अजीब ही दौर में चल रहा हैं । यहां कार्यपालिका जनता की राय लेकर, संविधान विशेषज्ञों की सलाह से ज्ञान अर्जित कर कानूनी मसौदा तैयार करती हैं और फिर संसद यानि विधायिका से कानून बनवा देती हैं । राष्ट्रपति तुरन्त साईन करके मंजूरी दे देते हैं और देश में लागू कर दिया जाता हैं। इसके बाद उच्चतम न्यायालय उस कानून को संविधान के प्रकाश में परखता हैं या जांचता हैं तो असंवैधानिक पाता है व घोषित भी कर देता हैं । इस दौरान लम्बे समय तक जो असंवैधानिक कार्य हुए उस पर चुप्पी साध ली जाती हैं । इस तरह से असंवैधानिक कार्यों को करने का ‘चोर दरवाजा बना दिया लगता हैं ।
किसानों से सम्बद्धित तीन कानूनों को लेकर कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री का जवाब सुनकर मुर्दे भी हंस पडे ऐसे हालात बन गये | जनता की राय् व विशेषज्ञों के मशवरों के बाद कानून बनाकर कहना हम उन्हें समझा नहीं पाये इसलिए वापस ले रहे हैं । हद तो तब हो जाती हैं जब जनता की मांग या जरूरत को देखकर कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू होती हैं पुरा सिस्टम काम करता हैं और सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति साईन करके भारतीय न्याय संहिता या बी एस एस को लागू करते हैं परन्तु ड्राइवरों के विरोध से एक धारा 106(2) को एक सचिव स्तर का अधिकारी लागू करने से रोक देता हैं अर्थात् राष्ट्रपति से ज्यादा ताकत एक सचिव स्तर के अधिकारी की हो गई |
कानून बनाने, रोकने, हटाने के इस अजीबोगरीब दौर में उच्चतम न्यायालय में एक और कानून या उसकी धाराएँ असंवैधानिक होने के राडर पर चल रहे हैं | यह प्रिवेन्शन आँफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) कानून हैं जिसमें समय-समय पर बदलाव कर नई धाराएँ जोडी गई | इसने पूरे कानून को ही अप्रासंगिक बना दिया क्योंकि वह संविधान के अन्य मूलभूत आधार व उसके आधार पर बने अन्य कानूनों से समन्वय नहीं करता अपितु उनमें टकराव पैदा करता हैं । दिल्ली के मुख्यमंत्री जो एक बड़ा संवैधानिक पद हैं उस पर कार्यरत व्यक्ति को प्रवर्तन निर्देशालय (ईडी) ने इसी कानून के तहत जेल में बन्द कर रखा हैं इस कानून में नये संसोधन के बाद किसी भी व्यक्ति को जॉच के दौरान जेल में बन्द रख सकते हैं और उसे जमानत भी नहीं मील सकती जब तक ईडी हामी नहीं भर दे | सबसे बड़ी बात इसमें दर्ज मामलों में आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने का भार होता हैं ।
यहां मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद का हैं जो कही दिनों से जेल में हैं क्योंकि ईडी की जॉच चल रही हैं । इन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया और संविधान के अनुसार राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, चुनाव आयोग आदि आदि हटा नहीं सकते है | इन्हें हटाने या राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संवैधानिक आधार चाहिए जो आरोप सिद्ध होने पर ही सम्भव है जबकि अभी तो जांच चालू, हैं। एक मुख्यमंत्री जेल हो तो उसको दी गई जानकारी व उसके दिये आदेश गोपनीयता की संवैधानिक शपथ का घोर उल्लंघन हैं। यह दुनिया के लोकतन्त्र में ऐसा पहला ही उदाहरण हैं । इस कारण से जर्मनी, अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र ने इस पर टिप्पणी करी हैं । कई देशों की मीडिया ने इस कारण से भारत का मरा हुआ लोकतन्त्र कहकर खबरों को प्रकाशित करा हैं ।
निचली अदालतों व हाईकोर्ट तक मामला चल गया क्योंकि संसद के अनुसार जो कानून पास हुआ व राष्ट्रपति ने साईन करा उसी के अनुुसार सही व गलत देखना था | अब मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं और मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में हैं इसलिए पीएमएलए कानून की भी जांच संवैधानिक रूप से होगी | मुख्य न्यायाधीश ने पहले विपक्ष के एक नेता को जमानत देते हुए टिप्पणी करी थी कि एक व्यक्ति सांसद हैं वो बडी बात नहीं हैं, बड़ी बात यह हैं कि एक सांसद की संसद से सदस्यता खत्म कर देने से उसके क्षेत्र-विशेष के लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व लम्बे समय तक शुन्य हो जायेगा |
अब नये मामले में तो बात एक पूरे राज्य की जनता के सिर्फ प्रतिनिधित्व नही सभी दैनिक जीवन के प्रशासनिक कार्यों की हैं । भारत के मुख्य न्यायाधीश को तत्काल मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद को लेकर फैसला लेना होगा क्योंकि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार ने दूसरे देशों की प्रतिक्रिया पर जवाब देते हुए भारत की न्यायपालिका के कन्धे का इस्तेमाल करते हुए वार करा था कि आपको भारत की न्यायपालिका पर विश्वास करना चाहिए | यदि न्यायपालिका कोई फैसला लेती हैं तो कोई एक कानून असंवैधानिक हो जाता हैं अन्यथा चुप रहने या आगे तारीख देकर समय बर्बाद करने से दूसरे देशों में सुप्रीम कोर्ट भारत के मरे लोकतन्त्र का मरा चूहा जैसे आक्षेपों का लगना शुरु हो जायेगा | जो अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहने पर हर भारतवासी को निर्लज्जता, अपमान का बौध करायेगा |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक