भोपाल – हिन्दू एवं सनातन धर्म के अनुसार नंदी भगवान शिवशंकर के परम सेवक व भक्त है जो सदैव उनके आदेश क्या ईशारे मात्र पर उसको पलक झपकाते क्रियान्वयन करने के लिए तत्पर रहते है चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी नीजी कीमत चुकानी पड़े | धर्म, त्याग, आस्था, भक्ति यह सब उस स्तर की अब अमृत काल और राजनैतिक झकडन वाली सत्ताओं में कहां बची हैं | आम जनता के सेवक / नौकर / प्रतिनिधि लोगों यानि अपने मालिकों के पैसों से ज्यादा ऐशों आराम, सुख-सुविधाएं, हर क्षेत्र में विशेषाधिकार के नाम पर पहले लाभ उठाते हैं | इन लोगों की इसी, भोगवाद व सत्ता को अपनी मुट्ठी में भीच कर रखने की आदत ने त्रिदेवों के महादेव को उनके सेवक के माध्यम से संसद से बाहर जाने का रस्ता दिखा दिया |
हम बात कर रहे हैं भारत की नई संसद की जहां राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता ने जब प्रतिक के रूप में शिवशंकर की फोटो दिखाई तो संसद में शोर-शराबा मच गया | हर कोई इसे सांसदों के संसद के अन्दर बोलने व दिखाने के नियमों को उछल-कूद कर बताने लग गया |
इसके पश्चात् लोकसभा अध्यक्ष ने नियमों की किताब दिखाते हुए उसके नियम पेज सहित बताये और कहां कि आप इस पोस्टर या प्रतिक को नहीं दिखा सकते हैं। यह सदियों पुरानी धर्म-संस्कृति वाले भारत देश में पहली बार हुआ जो दौ सो सालों से ज्यादा के शासन में अंग्रेजों ने भी नहीं करा | फूट डालो व राज करो की घृणित राजनीति को देवताओं व उनके सेवकों / परम भक्तों के मध्य लगा कर बांटने का काम कर दिया |
देश क्या पूरी दुनिया को पता हैं कि लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास राजदण्ड सैंगोल रखा हैं जिसके सबसे ऊपर भगवान नंदी की प्रतिकात्मक मूर्ति हैं | यह राजदण्ड संसद के किस नियम व कानून से आया यह आजतक किसी ने नियामवली खोलकर नहीं बताया | इसकी स्थापना के पहले ही आपके साइंटिफिक-एनालिसिस ने देश को सचेत कर दिया कि यह हिन्दू देवी-देवताओं के साथ हर धर्म सम्प्रदाय के संस्थापकों, पूजनीय, महापुरुषों का अपमान व निरादर करेगा क्योंकि संसद में कही सांसद अपने पहनावें में इनके प्रतिक चिह्नों को गले में, सिर पर, हाथ की कलाई व बाजू पर कपड़ों पर छपवाकर, लिखकर संसद में आते हैँ |
लोकसभा स्पीकर / अध्यक्ष भी पहले मूल रूप से सांसद हैं, उन्हें सभी सदस्यों ने बहुमत से चुना इसलिए वो सबसे ऊपर बैठते हैं और लोकसभा को चलाते हैं | यदि लोकसभा स्पीकर की सांसदी लेली जाये या किसी कारण वश चली जाये तो वो अध्यक्ष पद पर बने लायक नही रहेंगे | इसलिए संसद में बोलने, बताने, दिखाने के नियम जो सांसदों के लिए लागू हैं वो लोकसभा स्पीकर पर भी लागू होते हैं | इसके पश्चात् वो अपनी कुर्सी के पास एक धर्म प्रतिक सैंगोल को रखकर अपने आदेश, व्यक्तव्य में उसको क्यों दिखाते हैं और इसका लाईव टेलिकास्ट पूरे देश में होता हैं जो संविधान की खुल्लमखुल्ला धज्जियां उडाना हैं व हिन्दी के कौनसे मुहावरे का सत्यापन सही रहेगा वो आप तय कर ले | एक हैं नौ सो चूहे खाकर बिल्ली चली हज करने व दुसरा हैं गुरूजी भट्टे खायें और चेले को ज्ञान सिखाये |
साइंटिफिक-एनालिसिस के विज्ञान आधारित सिद्धान्तों व तर्कों को माने तो सैंगोल के ऊपर से भगवान नंदी के प्रतिक को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास से हटा कर कहीं और स्थापित करना चाहिए चाहे वो शिवशक्ति केन्द्र हो ताकि नदीं अपने भगवान की सेवा से अलग न हो | इसके पश्चात् सैंगोल के बचे डंडे जो किसी और धर्म प्रतिक से मुक्त हों उसे लोकसभा अध्यक्ष की संवैधानिक कुर्सी के पीछे लगा देना चाहिए ताकि इस संवैधानिक कुर्सी पर बैंठने वाले व्यक्ति की कमर सीधी रह सके ताकि वो इस गरिमामय पद से निचे के पदों के सामने झुककर उसकी फजीहत न करे | अपनों से बड़ों व सम्मानीय लोगों के सामने झुकना व चरण स्पर्श करना एक व्यक्तिगत आधार हैं जो उसकी परवरिश, समाज, सभ्यता व संस्कृति से आता है। लोकसभा में कई ऐसे सांसद हो सकते हैं जिनकी उम्र अध्यक्ष से ज्यादा हो तब व्यक्तिगत आधार पर धर्म-संस्कृति के अनुसार वो सबसे ऊपर वाली कुर्सी पर न बैठ सकते हैं और आदेश देना तो दूर की बात हैं।
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक